Friday, 9 May 2014

कौन है हिंदू..कौन नहीं.. 1



- राकेश माथुर/  
आजकल वास्तविकता से दूर हटकर अधिकाधिक संख्या बढ़ाने की दृष्टि से हिंदू शब्द की परिभाषा की जाती है। अतएव कई लोग वेद न मानने वालों को भी हिंदू सिद्ध करने के लिए ..
 
आसिन्धौः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका।
पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।

-ऐसी परिभाषा करते हैं, किन्तु इस परिभाषा की अतिव्याप्ति होती है। इसके अतिरिक्त भावना की दृढ़ता का कोई आधार नहीं रहता।
 
 गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः ।
पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।


- यह परिभाषा अभीष्ट समाजों में अनुगत हो जाती है। गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो-वही हिन्दु है। यह सिख, जैन,, बौद्ध, वैदिक -सब में घट जाती है। परन्तु वेदों के सिन्धवः, सप्त सिन्धवः इत्यादि प्रयोगों और सरस्वती, हरस्वती, आदि प्रयोगों की दृष्टि से तथा कालिकापुराण, मेदिनीकोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है।

हिन्दू संस्कृति की दृष्टि से अनादि परमेश्वर से अनेक प्रकार का संकोच और विकास रहता है। ईश्वररहित जड़ विकासवाद, जिसके अनुसार जड़ प्रकृति से ही चैतन्य का विकास होता है और जिस विकासवाद की दृष्टि से अभी तक सर्वज्ञ ईश्वर और शास्त्र विकसित ही नहीं हुआ है वह सर्वथा अमान्य है।
आध्यात्मिकता और धार्मिकता से विहीन साम्यवाद, समाजवाद आदि भी हिन्दु संस्कृति में नहीं खप सकते।
 

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