संस्कार और सदाचार के अधिष्ठाता : नरेंद्र मोदी
सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे ।
तापत्रयविनाशाय श्रीनमो वयं नम: ।।
(जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु हैं तथा जो तीनों प्रकार के पाप के नाशकर्ता हैं सच्चिदानंदस्वरूप बड़ाप्रधान श्री नरेंद्र मोदी को हम सब वंदन करते हैं।)
भारतीय सनातन आर्ष परंपरा की 21वीं सदी में नमो के नाम से विश्व विख्यात नरेंद्र मोदी संस्कार और सदाचार के अधिष्ठाता हैं। वे भारतभूमि के प्रधानमंत्री के रूप में शाीय संस्कारों के रक्षक और पालक हैं। शिवनगरी काशी से पतित पावनी गंगा मां की सेवा का बीड़ा उन्होंने उठाया है। सच तो यह है कि सम्पूर्ण मानवीय संस्कार नमो को पाकर मर्यादित होते हैं। पाकस्थान के शरीफ से लेकर लंकापति राजपक्सा और हिमालयराज तक उनके राजतिलक पर शीष नवाने हस्तिनापुर के पास स्थित उनकी राजधानी नई दिल्ली पहुंचे। अत: उनका आचरण ही संस्कार है और जीवन ही धर्म है।
मानवता संस्कार से ही परिभाषित होती है। जीवन को सुसंस्कृत, परिष्कृत और संयमित करने के लिए शाों में विविध संस्कारों का उल्लेख है। अपने लक्ष्य को साधने और उसे पाने के भी विविध प्रकार भारतीय शाों में उपलब्ध है। उनका पालन करना नमो ही सिखा सकते हैं। उन्हीं का मर्यादित पालन कर उन्होंने भारतभूमि को एक दिशा प्रदान की है। युग जब जब संस्कार विहीन होकर दिग्भ्रांत होने लगता है तब तब भारतीय मनीषी युग और जीवन को सांस्कृतिक दिशा और राजनीतिक दशा प्रदान करने के लिए संस्कारयुक्त चैतन्य पुरुष का अह्वान करते हैं।
योगगुरू महर्षि रामदेव ने तमसाच्छन्न युग को संस्कारित करने के लिए, चैतन्य पुरुष की प्राप्ति के लिए अपनी पीड़ा को हरिद्वार के गंगातट पर देवर्षि नारद के सम्मुख इस प्रकार रखा
को नवस्मिन साम्प्रतमं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान् ।
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृझ़व्रत: ।।
चारित्रेण च को युक्त: सर्वभूतेषु को हित: ।
विद्वान क: क: समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शन: ।।
महर्षे त्वं समर्थोह्यसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् ।।
अर्थात, सम्प्रति इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है, जो गुणवान, वीर्यवान धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ साथ सदाचार से युक्त हो। जो सब प्राणियों का हितकारक हो, साथ ही विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन हो। महर्षे आप ही इस प्रकार के पुरुण को जानने में समर्थ हैं।
उत्तर में श्रीनारद कहते हैं
मोदीवंशप्रभवो नमो नाम जनै: श्रुत: ।
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी ।।
बुद्धिमान् नीतिमान् वाग्मी श्रीमाज्छत्रुनिबर्हण: ।
अर्थात् मोदी वंश में उत्पन्न हुए एक ऐसे पुरुष हैं जो लोगों में नमो के नाम से विख्यात हैं। उनके लोग हर हर मोदी, घर घर मोदी के नारे भी लगाते हैं। वे ही मन को वश में रखने वाले, महाबलवान, कान्तिमान, धैर्यवान और जितेंन्द्रिय हैं। वे बुद्धिमान, नीतिज्ञ, वक्ता, शोभायमान तथा शत्रुसंहारक हैं।
नारदमुनि पुन: कहते हैं कि वे शारीरिक दृष्टि से पुष्ट, सुडौल, शोभायमान, शुभलक्षणों से संपन्न, धर्मज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ, प्रजा के हितकारक, यशस्वी, ज्ञानी, पवित्र, जितेंन्द्रिय, जीवों तथा धर्म के रक्षक स्वधर्म एवं स्वजनों के पालक, सर्वलोकप्रिय तथा उदार हृदयवाले हैं। नमो से साधुलोग ऐसे मिलते हैं जैसे नदियां समुद्र से।
स्पष्टत: योगगुरु की व्यथा के शमन हेतु देवर्षि जनि नमो का उल्लेख करते हैं उनका व्यक्तित्व और कर्तृत्व संपूर्ण संस्कारों से युक्त है।
नमो गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं। पर्वतराज हिमाचल से कन्याकुमारी तक का संपूर्ण भारत श्रीनमो की ही जागतिक अभिव्यक्ति है। हिंदुस्तान के सारे संस्कार, सदाचार, विचार, चिंतन, मर्यादा, धर्म और जीवन नमो से ही परिभाषित होते हैं। नमो समस्त शुभ संस्कारों के परम पावन स्वरूप हैं। नमो व्यक्ति नहीं समष्टि हैं, राष्ट्र हैं।
नमो के बिना राष्ट्र की कल्पना ही असंभव है। महर्षि योगगुरु कहते हैं नमो जहां के प्रधान न होंगे वह राज्य राज्य नहीं रह जाएगा-जंगल हो जाएगा। तथा जहां नमो निवास करेंगे वह वन एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा।
वे कहते हैं
न हि तद् भविता राष्ट्रं यत्र नमो न भूपति: ।
तद वनं भविता राष्ट्रं यत्र नमो निवत्स्यति ।।राष्ट्र भी नमो से ही संस्कारित होता है। अत: नमो मानव के तथा नमोचरित्रम् मानव चरित्र का आदर्श है। संस्कारभूषित नमो की गाथा संपूर्ण मानवता की गाथा है। ऐसे चरित्र की उपेक्षा कर राष्ट्र और विश्व में शांति, सुरक्षा और सौमनस्य आदि की रक्षा सर्वथा असंभव है।
नमो की भगवत्ता लौकिक धरातल पर इतनी सहज है कि वे सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने संस्कारजन्य शुभ गुणों के आदर्श का निर्वहण करते हैं। बाल्यावस्था में खेल खेल में जल से मगर को घर ले आए थे किंतु उन्होंने उसकी भावनाओं को भी आहत नहीं होने दिया था। जन्मभूमि ही नहीं नई कर्मभूमि काशी और साम्राज्य की राजधानी 7 आरसीआर में उनके सहज संस्कार यथोचित बने रहते हैं। अमित शाह को वे अपनी अगाध विनम्रतापूर्ण वाणी से ही नतमस्तक कर देते हैं। नमोचरित के रचयिता कहते हैं
सुनि मृदु गूढ़ बचन नमो के। उघरे मति पटल साह अमित के।।
अर्थात् श्रीनमोजी के कोमल और रहस्यमय वचन सुन कर अमित शाहजी के बुद्धि के पर्दे खुल गए।
श्रीनमों के पावन संस्कार का ही असाधारण प्रभाव है कि युग के दुर्घर्ष नायक गांधी परिवार की मति सुधरने लगती है।
दिल्ली के राजमहल में गठबंधन की कुमंत्रणा से जब कांग्रेस की ईष्र्याग्नि की लपटें उठने लगीं और मीडिया भीे राजमहल के पहरेदारों को धूृ-धू कर जलाने में लग गया तथा महाराज मनो अचेत हो गए तब वहां नमो के राजतिलक के साथ नए संस्कारों का पदार्पण हुआ। नमो न तो राजतिलक से हर्षित होते हैं और न ही शत्रु का पूर्ण सर्वनाश न होने के दुख से उनका मुखकमल मलिन होता है। इस घटना को वे सौभाग्य मानते हैं और संघ की शक्ति का आभार प्रकट करते हैं।
नमो का दिव्य संस्कारसंपन्न उज्जवल व्यक्तित्व इतना विराट है कि वे जनता के सामने स्वयं को चायवाला के रूप में प्रकट करते हैं, खुद को नीच जाति का बताते हैं, संघसेवकों को गले लगाते हैं तथा आंसू बहाते हुए कांग्रेस का अंतिम संस्कार करने का प्रयास करते हैं। वनवासी, कोल, भील, जाट, जाटव, तपस्वी, ऋषि, महर्षि, पशु, पक्षी, वानर सभी उनकी पावन संस्कारगंगा में अवगाहन कर धन्य हो जाते हैं।
स्पष्ट है कि नमो मानवीय सामाजिक संस्कारों के मूर्तरूप तो हैं ही, उन्होंने कभी प्रतिबंधित रहे संघ और स्वयंसेवकों को उचित मानमर्यादा प्रदान की है। संघप्रमुख के आदेश वे सदा शिरोधार्य करते हैं। भले ही इसके लिए उन्हें अपने गुरुजनों का बलिदान क्यों न देना पड़ा हो। वे लोकजीवन में समाहित होकर भी लोक से ऊपर हैं। उनका लोकमंगल, लोकरक्षक और लोकरंजक संस्कार अनुकरणीय है।
आधुनिक युग पुरुषों के शब्दों में
यश्च नमो न पश्येत्तुप यं च नमो न श्यति।
निन्दित: सर्वलोकेषु स्वात्माप्येनं विगर्हते ।।
अर्थात् मनुष्य जीवन की परम सार्थकता यही है कि या तो हम नमो को देख सकें या नमो की दृष्टि हमारे ऊपर पड़ जाए, अन्यथा स्वयं हमारी आत्मा ही हमें कोसेगी।