Monday, 10 September 2018

क्या संभव है एक संस्कृति एक देश ?

राकेश माथुर।।

आजकल हमारे देश में एक देश एक कर, एक देश एक धर्म, एक देश एक संस्कृति के नारे खूब उछाले जा रहे हैं। एक टैक्स के नाम पर जीएसटी लगाया गया। लेकिन हकीकत में देखें तो बिल में दो जीएसटी केरूप में रकम काटी जाती है। सीजीएसटी और एसजीएसटी। तो उसे एक कर कहना धोखाधड़ी है। शुद्ध सरकारी धोखाधड़ी। किससे?  आम जनता से। इसी तरह जब कहा जा रहा है कि पूरे हिंदुस्तान में (देश का आधिकारिक नाम भारत और इंडिया है) अब देश में एक देश एक संस्कृति का नारा लगाया जा रहा है। एक संस्कृति ? क्या यह संभव है ? वह भी बहुसंस्कृति वाली इस भारतभूमि पर ? मुख्य प्रश्न है कौन सी संस्कृति ? हिंदुस्तानी ? खिचड़ी ? या विशुद्ध हिंदू संस्कृति ?
हिंदूबहुल देश है । एक संस्कृति का नारा लगाने वाले भी हिंदूवादी संगठनों से जुड़े है। तब क्या वे हिंदू संस्कृति पूरे देश में लागू करना चाहते हैं ? इस तथाकथित हिंदू संस्कृति में क्या सर्वसाधारण हिंदू या मुसलमान को कभी पूरी श्रद्धा हो सकती है? तब फिर यदि एक संस्कृति हिंदू संस्कृति ही मानी जाए तो यह आशा कैसे की जा सकती है कि उसे मुसलमान भी स्वीकार कर ही लेंगे ? कुछ लोग कह सकते हैं कि ‘मुसलमान कलमा-कुरान और मस्जिद का आदर करते हुए अपनी भाषा और वेशभूषा रखते हुए भी भारतीय संस्कृति के रूप में हिंदू संस्कृति का पालन कर सकते हैं।’ फिर आचार-विचार, रहन-सहन, इतिहास-साहित्य, दर्शन, धर्म आदि से भिन्न संस्कृति कौन सी वस्तु होगी जिसे मानकर मुसलमान उस पर गर्व कर सकेगा ? कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि ‘एक संस्कृति हिंदू संस्कृति ही है, वही सबको माननी होगी, जो एेसा नहीं करेंगे उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा।’ किंतु ऐसा कहना भारतीय संविधान द्वारा घोषित सेक्युलर (धर्म निरपेक्ष या पंथ निरपेक्ष जो भी आप कहें) नीति के ही विरुद्ध नहीं बल्कि हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की मूल भावना के ही विपरीत है। हिंदू धर्म तो प्रत्येक जाति, प्रति व्यक्ति को स्वधर्मानुसार चलने की स्वतत्रता देता है। ‘स्वधर्मे निधनं श्रेय:’ उसका सिद्धांत है। अत: उसे कभी भी अभीष्ट नहीं कि येन केन प्रकारेण सभी हिंदू बना लिए जाएं। हिंदू संस्कृति ही भारतीय संस्कृति है, इस दृष्टि से एक संस्कृति का नारा ठीक है पर इसका यह अभिप्राय कतई नहीं कि देश में अल्पसंख्यकों की संस्कृतियों का क्षरण हो। यह भारत की ही विशेषता है कि वह भिन्नता में भी एकता देखता है। एक सूत्र में गुंथे हुए मणियों की माला का उदाहरण भी इसमें देखा जा सकता है।

असल में संस्कृति है क्या ? 
यह समझना बहुत जरूरी है। ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा का है। पर दुख है कि आजकल इसका प्रयोद अंग्रेजी के कल्चर शब्द के अनुवाद के रूप में किया जा रहा है जिससे संस्कृति शब्द का वास्तविक अर्थ कभी समझ में नहीं आता।

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